संस्मरण
थै- मजा करो म्हाराज
आज थांरी पांचूं घी में है
म्है-पुरस्यो सगळो देस
बता-अब काईं जी में है?
पूठी कविता मांय आज री व्यवस्था पर सांवठो व्यंग ही नहीं है, अबखाया सूं जूझते मिनख री हूंस भी है। कवि मोहम्मद सदीक री आ कविता जिती गैरी है उता ही गैरा मिनख भी हा बै। स्कूल रै दिनां मांय ‘थे मजा करो म्हाराज‘ कविता बालपणै रे भायंलां सागै गावण में इतो मजो आवतो कै कईं-कईं दिनां तक कविता मूडै सूं ही नीं उतरती। उण बगत ईं कविता रो ठीक-ठाक मतलब तो ठा नीं हो पण जद भी कोई सागै रे भायलै रो चोखो कामं होय जावतों या फेरूं उणनै स्कूल मांय कोई इनाम मिलतो....या फेंरू आस-पड़ोस मायं किरैई लॉटरी निकलण जैड़ो कोई काम निजर आवतों, झट मूंडै सूं अेक ही बात निकळती-‘पांचू घी में है‘ अर आ बात निकळते पाण ही सदीक सा. री पूठी कविता सूणावण रो जी करण लागतो। आसै-पासै ‘थे मजा करो म्हाराज‘ कविता रो इतो जादू हो कै गळी-गळी मांय रा टाबर जद भी भैळा हुवता ईं कविता ने गावण रो कोड रैवतों ही।
उण बगत म्हूं राजस्थानी रै इण्या गिण्या लिखारा ने ही जाणतो हो। बालपणै मांय या तो ‘थै मजा करो म्हाराज‘ कविता ने जठै मौको लागतो भायला सामीं चला देवता या फेरूं कन्हैयालाल सेठिया रै लिख्योड़ी मायड़ भोम रे गारब री कविता ‘ अरे घास री रोटी ही जब बन बिलावड़ो ले भाग्यो‘ सूणा‘र साहित्य मुजब थोड़े घणै ज्ञान रो बखाण कर देवतां। स्कूल रै मांय भणतै-भणतै ही जद बडी कक्षावां मांय आया तो सदीक सा. री कई कवितावां और भी भणन सारू मिली। साहित्य मुजब लगावा ही हो कै जको लिखारो दाय आवतो उणनै लगोलग भणर रो कोड भी रैवतो।... ओळ्यू रे उणियारै मांय जका बालपणै रा चितराम है, उणा मांय मोहम्मद सदीक रो चैरो इस्यो है जिणनै म्हूं सैसूं पैली ओळखियौ। बिंया कन्हैयालाल सेठिया अर गंगाराम पथिक री कवितांवा भी मनै उण बगत घणी दाय आवती।... सदीक सा नै मंचा पर सुणन रौ मौको भी बालपणै मांय घणो ही मिलियो। बै राजस्थानी री नूंवी कवितांवा मांय भी उती ही दखल राखै जिती कै पारम्परिक छंद री कविता मांय। सदीक सा. री केई कवितावां तो बालपणै री म्हारी डायरी में उकेर्योडी आज भी पड़ी है। डायरी मांय सदीक सा. ने उकेरणो कद हुयौ आ बात याद करूं तो उथळो नीं मिलै पण आ बात साव साच है कै नीं जाणै क्यूं बै हमैस निकट रा कवि ही लखावता।
निकट रा लखावता-लखावता कद सांपरतेक बै निकट रा होयग्या, ठा ही नीं लाग्यौ। ओजूं बै, ई दुनिया मैं नीं रैया है, पण उणा रो सागौ, उणा रा बोल, उणा रै चैरे पर रैवण आळी टाबर सरीखी मुळक, जूझती जूण लिख्योड़ी उणा री फटफटी आद री इत्ती बात्यां अर याद्या हैं कै चावूं तो भी उणा नै बिसरा नीं सकूं। स्कूल रै दिनां री बात है। कवि सम्मेलनां मांय जावण रो उण दिना अणूतों ही कोड हो। सदीक सा. री ‘थारै सिर पर पैणा नाग, लाडला जाग सकै तो जाग...‘, ‘ओ बाबा थारी बकर्या बिदाम खावै...‘ ,‘किसका रे झिंडिया किसका तम चालो म्हारी ढोलकी ढमाक ढम‘ आद कवितावां सूण‘र दो तीन दिनां तक स्कूल मांय भी उणा ने गावता। म्हूं उण दिना बीकानेर रै डागा रै चौक री चावी-नै-ठावी बी.के. स्कूल मांय भणतो। अेक दिन हिन्दी पढावण आळा मास्टरजी किसनलाल जी री कक्षा चाल रैयी ही। मास्टरजी रो कक्षा रै मांय इतो रूतबो हो कै जिण बैळा बै भणावता, मजाल है कोई चूं‘र मूं ही कर लैवे। बै कोइ्र पाठ भणा रैया हा, पण म्हारो मन तो और किनैई हो। अेक दिन पैला ही साले री होळी मांय हुयौड़े कवि सम्मेलन मांय सूण्योड़ी सदीक सा. री कविता ‘‘थारै सिर पर पैणा नाग, मिनख रै मूंडे आया झाग‘ कनै बैठे भायले ने सूणा रैया हो। बो मास्टरजी रै डर सूं कांपतो होळे-होळे मनै समझा रैया हो कै अणभार मास्टरजी जिको पाठ पढावे, उण कानी ध्यान दूं, पण म्हूं बिरै समझावण ने अळगो राख‘र कविता बिरै नर्इ्र सूण‘न रो मूड होवते थकै ही सूणा रैया हो। अचांचूक मास्टरजी म्हा दोनां री फूसफूसाहट कानी गौर कर‘र जोर सूं हाको करता बोल्या-‘क्यूं पाठ मांय जी कोनी कै?‘ भायलो अणूतो डरतो म्हा कानी देख्यौ। मास्टरजी इतै में तो रीस सूं भरीजग्या। नीं जाणै क्यूं बिंयानै कनै आवतो जाण परो‘र भी म्हूं परवा नीं करी। आते ही बां कनै बैठे भायले रै चनपट़ मार दी। बिनै मार-परा‘र बै खारी निजरां सू म्हा कानी देख्यो अर मारण सारू हाथ बढायो ही हो कै म्हूं बोल पड़्यो-‘मास्टरजी, म्है दोनूं कोई गळत काम थोड़े ही कर रैया हा, थै ही तो कैवो कै कविता कानीं ध्यान दिया करो, म्हूं कविता पर ही तो बात कर रैया हो। काल ही साळे री होळी मांय मोहम्मद सदीक सा री कवितावां सूणी अर आज उणनै याद करण री कोसिस कर रैयो हो।‘ मास्टर जी ने इती बात कैणै री आज तक कोई हिम्मत नीं करी ही। अेकबारगी तो मास्टरजी पूठी बात सूण‘र अणूती रीस करी पण फैरू नीं जाणै काईं सोच‘र कैयो-‘सदीक सा. तो म्हारा भायला है। तनै बिंयारी किसी कविता चोखी लागी रै?‘
म्हूं बिंया री बात सूण‘र पडूत्तर हाथो-हाथ ही दियो-‘बिंयारी कवितावां तो सगळी ही चोखी लागी पण अणभार ‘ताम झाम सा-तामझाम सा/सांची-सांची कैंवा जद लागै डाम सा‘ सूण‘र आया। सा. ब्होत ही गजब री कविता है।‘ आ सुण परा‘र मास्टरजी पाछो पूछ्यो-‘तनै इरो मतलब ठा है?‘ म्हूं डरतो डरतो पडूतर दियो-‘मतलब तो ठा नीं है, पण मास्साब मनै तो आ ब्होत चोखी लागी।‘ मास्टरजी नीं जौणै थोड़े बगत कईं सोचियो, पाछा टेबल कांनी गया अर कैयो-‘आज जिको भणायौ है बितो ही ठीक है बच्योड़ो पाठ काल करांला। मास्टरजी रो ओ नूंवो रूप हो। मास्टरजी पछे पूरे पीरियड मांय सदीक सा री घणकरी कवितावां ‘थै मजा करो म्हाराज‘,‘सिर पर पैणा नाग‘, आद पर बात्या करण लागग्या।
आ बात ओळ्यूं रे उणियारै आज भी इण मुजब है कै सदीक सा म्हारी जाण मांय उण बगत खुद बीकानेर री सादुल स्कूल रै मांय इंगलीस रा मास्टर हा। अेक मास्टर रो दूजे मास्टर रै सिरजण सूं इतो लगाव कै आपरै करड़े सुभाव सूं आंतरै कक्षा रै मांय पाठ पढावण नै छोड़‘र उणा री कवितावां पर बात करणी। आ बात जद या करूं तो सदीक सा. रो सुभाव भी औचक याद आ जावै। बै जिती गैरी कवितावां लिखता, उती ही उंडी सोच भी राखता। जात-पांत सूं साव अळगा रैवण आळा बै इस्या कवि हा जका रा सरोकार पूठै सैर रै लोगां सूं हा। कवि सम्मेलनां मांय ही नीं, सड़क पर चालतो ही जै कोई सदीक सा. ने बलळा‘र गीत सुणावण री फरमाईस करतो तो बै कदैई ना नीं करता। ओ‘इज कारण हो कै बै सगळा रा ही चावा-नै-ठावा हा।
सदीक सा. रे रचना करम सूं तो पैचाण बालपणैं मांय ही होगी पण उणा सूं कदैई बंतळ नीं हो सकी ही। इण रौ मौको भी तद मिल्यौ जब म्हैं कॉलेज जावणो सरू करियौ। 1989 री बात है आ। म्हूं जद गंगाषहर रै जैन पी.जी. कॉलेज मांय दाखिलो लियो हो। रोज साईकिल सूं कॉलेज जावणो होवतो अर पाछा सिंझं्या नै जद भायला सागै आवतां तो कोटगेट रै मांय सूं हो‘र आता। सदीक सा. रो कोटगेट रै मांय पान री अेक दुकान पर हमेस बैठणो होवतो। बिंयारै सागे दो-तीन जणा और भी होवतां। ठा, नीं कद अेक दिन बिंया सूं बंतळ हुई। कठैई बात-चीत रै मांय बिंया अपणै आप ने मोटे लिखारै रो अैसास नीं दिरायो। म्हूं उण बगत पत्र-पत्रिकावां मांय खासो छपण लाग ग्यौ हो। जयपुर सूं निकळण आळे नवभारत टाईम्स मांय बिंया रा सम्पादक श्याम आचार्य रो अणूतो नेह हो कै बिंया इणमें उण बगत लगो-लग लेखण रो मौको दियोड़ो हो। इणरै सागै-सागै इतवारी पत्रिका, नवज्योति, राजस्थान पत्रिका, दिल्ली प्रेस री पत्रिकावां मांय भी खुब छपतो। ...तो, सदीक सा. सूं जद इंया ही अेक दिन कॉलज सूं आय रैयो हो तो म्हारो अेक भायलो जको बिंयारी स्कूल मांय भणतो, ओळखाण करायी। मंच पर तो बिंयानै देखता ही हा, सांपरतेक पैली बार रूबरू हुयौ तो मन श्रद्धा सूं लबोलब होयग्यौ। सागै रो भायलो कैयो-‘ गुरूजी राजेष भी पत्र-पत्रिकावां मांय घणौ ही लिखैं।‘ नाम सूण‘र तो सदीक सा. झट माथै पर हाथ फेर्यौ। गळगळा होय‘र कैयो-‘मनै जो आज ठा लाग्यो कै राजेष व्यास थे हो। इ उमर मांय लिखणो अर इत्तो छपणो तो कोड री बात ही नीं है गारब री भी बात है।‘ सदीक सा. री बात सूण‘र मांय रो मांय राजी भी हुयौ, पाछो कैयो-‘ म्हूं तो गुरूजी आप री कवितावां रो फेन हूं। सा. इस्यी कवितावां थै किंया लिखो?‘ सदीक सा. आ बात सुण परा मनै आपरै कने बैठायो। माथै पर हाथ फैर्यौ अर फेरूं कैयो-‘कविता मांय सूं निकळे, म्हंू बणावणी चावूं तो भी बा बण नीं सकै।‘ बै तो आ बात बाद मांय सायद याद नीं राखी पण उणा सूं पैली मुलाकात री उणा री आ बात आज भी मनै याद है। घिर-घिर बिंया री सैकंडूं कवितावां रै बारे में जद सोचूं तो लखावै कै बां साव साच कैया हो कविता बण कियां सकै। बा तो आसी-पासी जिकी चिज्यां देखां, बिंयानै मैसूस करां जणै आपैई निकळन लाग जावै। सदीक सा. री कवितावां री आ खास बात भी है। बांरी कवितावां लोक संवेदना सूं जुड़योडी कवितावां है। अबखाया सूं जूझते मिनख री हूंस, हियै री अंतस तास अर लोकजीवण सूं जुड़ाव री उणा री कवितावां आपरै बगत रै साच ने ओळखती ही लखावै। बै हा भी इस्या मिनख जका आपसूं छोटे रो भी उतो ही मान करता जिता की आपसूं बडे रो करता। बिंयारे जीवण रो ओ खास पैलू ही हो कै बै जांत-पांत सूं अळगा खाली अेक मिनख बण‘र ही रैया। ओ‘इज कारण हो कै सगळा ही बिंयाने दाय करता।
सदीक सा. ने पढणै रो घणो चाव हो, बै सगळा ही पत्र-पत्रिकावां मंगाय‘र पढता। पत्र-पत्रिकावां मांय म्हूं उण दिनां बीकानेर मांय खेलीजण आळा नाटकां री समीक्षावां भी लगो-लग करतो रैवतों। बै इण मुजब भी मिलता उण बगत खुब हथांया करता। बीकानेर इस्यो सैर हो जठे दूजी जगावां सूं नाटक घणा खेलीजता ही नीं, रंग संस्थावां नाटाक मुजब आयोजन भी घणाई करती। राजस्थान रै रंगमंच मांय सैसूं सिमरध रंगमंच भी बीकानेर रो ही हो,उण दिनां। उणी दिनां बीकानेर रै रंगंमच ने केन्द्र में राख‘र हूं अेक आलोचना लेख लिख्यो। ओ राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर री पत्रिका ‘मधुमती‘ मांय छप्यो। लेख रो षिर्षक हो-‘सामाजिक प्रतिबद्धता से विमुख होता रंगमंच‘। लेख पर खासो बवाळ भी मच्यो। बीकानेर री केई रंग संस्थावां तो मनै गाळ्या तक निकाळी। लेख मांय हंू रंगमंच री अबखाया मांय रंगसंस्थावा री कमियां पर लिख्यो हो। रंगमंच मांय सिनेमा रै साधना रो उपोग, अकादमी रै सैयोग लेवण सारू अेक ही दिन मांय अेक नाटक संस्था कानी संू 6-6 नाटक खेलणा, रंग दर्सकां सूं सरोकार नीं राख‘र मंचीय प्रस्तुत्या रे सागै-सागै रंग समीक्षा रो गिरतो स्तर अर रंग संस्थावा कानी सूं खुद रा ही समीक्षक तैयार कर आपरै नाटकां री समीक्षा करवावण आद पर घणकरी बात्यां लिखी ही। सदीक सा. लेख ने भण‘र ब्होत राजी हुया। कोटगेट पर मिल्या जद रंगमंच पर ही हथायां हुयी। उण बगत बां कैयी जकी सगळी बात्यां तो याद नीं है, पण आ बात बिंयारी कैयोड़ी आज भी ओळ्यू मांय पळका मारै। बां कैयो -‘बीकानेर रो रंगमंच दूजी जगै रै रंगमंच सूं आपरी अलग ओळखाण राखै पण अणभार खैलीजै जका नाटकां मांय सिनेमा रो ताम-झाम इणरै भविष्य सारू चोखो नीं है।‘ बां आ बात उण दिनां बीकानेर मांय खेलीजण आळा नाटकां मांय सिनेमा रा सैट, गाणा आद घालण कानी इसारो कर्यो। इ बात ने डेढ दषक सूं बैसी बगत हुयग्यो। बै भी बाद मांय इं बात नै भूलग्या होसी पण आज जद उणा री ओळ्यू मांय ओ संस्मरण लिख रैयो हूं, अर बीकानेर मांय लगभग खतम होयोड़े रंगमंच पर विचार करूं तो सदीक सा. री कैयोड़ी बात साव साच मांय परिणत होयोड़ी लागै। बै रंगमंच रै बिगसाव सारू टाबरां रै नाटकां ने खेलण री मानसिकता रै बिगसाव सारू भी जोर देवता रैवता। रंगंमंच सूं बिंयारो लगाव ही हो कै बै टाउन हॉल मांय खेलीजण आळे लगभग हर नाटक नै देखण ने जावंता।
सदीक सा. सूं मिळणो लगो-लग होवतो ही रैवतों। राजस्थानी ही नीं बीजी भाषावां रै साहित्य मुजब भी उणा सूं बंतळ होवती तो ठा ही नीं लागतो बगत कणै मिनटां सूं घंटा मांय बदळतो पूठो होय जावतो। कोटगेट रैं मांय पान री दुकान माथै तो कणैई उणा रै घरै, कणैई साहित्य रै किणी जळसै मांय लगो-लग बिंया सूं साहित्य अर समाज रै दुजा विषयां माथै बात्यां सूरू होवती तो खत्म होवणै रो नांव ही नीं लेवती। अंगरैजी रै साहित्य सूं भी बिंया रो जुड़ाव उंडो हो। इलियट, वर्ड वर्थ, सैक्सपियर आद रै सागै सागै बीजां कई साहित्यकारां रेै जीवण संू लेयपरा‘र उणारै लिख्याड़ी पोथ्यां पर जद बात करणी सरू करता तो फेरूं बीं बात्यां रो कोई किनारो नीं लाधतो। राजस्थानी साहित्य मांय नूंवै सिरजण पर जद भी कोई बात होवती बै कैवंता-‘जदै तक अठै रा नूंवा लिखारा आपसूं पैली अर अणभार लिखण आळा बीजी भाषावां रै साहित्य ने नीं पढैला, राजस्थानी साहित्य रो बिगसाव नीं होय सकेला।‘ इण बात सूं बै केई बार दोरा भी होवता कै अठै आपस रै मांय साहित्यकार अेक-दूजै सूं संवाद नीं राखणौ चावै। संवाद हीनता सूं भी साहित्य रो बिगसाव नीं होवै।
नूंवी कविता सूं लेयपरा‘र राजस्थानी मांय गजल लिखणै री उणा री हूंस सारू अेक दिन उणा सूं बंतळ हुयी तो बिंया कैयी जिकी बात आज भी घिर-घिर चेते आवै। बिंया कैयो-नूंवा लिखारा जद तक पूराणी लीक सूं बंध्योड़ा रैसी, राजस्थानी मांय नूवों सिरजण भी नीं हुय सकैला। जद तक बीजी भारतीय भासावां नै ढूंढ-ढूंढ‘र पढण री मानसिकता रो बिगसाव राजस्थानी मांय नी हुवैला, इण भाषा री मान्यता रा सवाल खाली सवाल ही बण्या रैवेला, सवाल रो पडूतर कदैई नीं मिलैला।‘
इंया तो कोटगेट हमेस जावणो होवतो पण अेक दिन सैर सूं बारै हो या फेर कीणी कारण सूं कोटगेट तीन चार दिनां तक जाय नीं सक्यों। सदीक सा. रो घरै सन्देसो आयग्यो कै या तो म्हूं कोटगेट पूगूं या फेरूं बै खुद घरै आ रैया है। म्हूं सन्देसे लावण आळे ने कैय दियौ के आज सिंझ्या रै म्हूं बिंया सूं मिल लैसूं। ठा तो हो ही कै कोटगेट पर पान री दुकान मांय मिलसी। म्हूं पूग्यो जद जाणै बै म्हारी ही उडीक मांय हा। कनै रै झोळे मांय सूं दो किताब्यां निकाळी अर मनै सूंपते थके कैयो-‘अे पोथ्यां म्हूं इण वास्ते आज तनै दे रैया हूं कै थूं इणा ने पढ‘र इंया पर कीं लिख। जरूरी कोनी कै थूं बढिया ही लिखै, तनै जिसी अे लागै बिसी बात लिख‘र मनै दे दिये, म्हूं संभाळ‘र राखसूं।‘ म्हूं पौथ्यां कानी देख्यो। अेक तो बिंयारी लिख्योड़ी राजस्थानी री कविता अर गीतां री पोथी ही-‘अंतस तास‘ अर दूजी हिन्दी मांय निकळ्योड़ी उणा री पोथी ही-‘अभी अंधेरा है...‘कविता संग्रै। खास बात आ कै बिंया इणा पर म्हारै सारू राजस्थानी पोथी अंतस तास पर बां लिख्योड़ो हो-‘घणै हेत अर हरख सूं म्हारै लाडले साथी राजेष व्यास नै‘ अर हिन्दी पौथी पर लिख‘र दियो-‘मेरे अजीज मोहसिन राजेष व्यास को एक अदबी नजराना‘। म्हूं बिंयानै इण दोनूं ही पौथ्यां पर म्हारी तरफ सूं समीक्षा लिख‘र उणा ने दी पण बिंयारै इण अदबी नजराणै ने आज भी भूल्यों नीं हूं।
राजस्थानी भाषा रै नूंवा लिखारा सूं सदीक सा. घणौ नेह राखता। बात 1995 री है। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी कानी सूं यूवा लेखक समारोह मनावण सारू केई संस्थावा ने तेवड़िज्यो। उण दिनां बीकानेर मांय नूंवा लिखारा मांय सम्पत भी घणी ही। म्हूं भी उण बगत फ्रिलांसिंग ही कर रैया हो। जद भी म्है युवा लिखारा भेळा होवता, राजस्थानी मांय नूंवै लेखण, नूंवी दीठ मुजब बात्यां रो दौर चालतो तो खतम होवणै रो नांव ही नीं लेवतो। उण बगत मालचन्द तिवाड़ी, बुलाकी शर्मा, मदन सैनी, नवनीत पाण्डे, नीरज दईया, शंकरसिंह राजपुरोहित आद म्है जद भी भेळा होवता समकालीन लेखण पर घंटा-घंटा हथायां करता थकता ही नीं हा। ओळ्यू रे उणियारै सूर्य प्रकासन मन्दिर रो ऑफिस भी घिर-घिर याद आवै। उमर रै हिसाब सूं तो सूर्य प्रकासन मन्दिर रा सूर्यप्रकास जी अर म्हां लोगां मांय खासो फरक हो पण समझता बै भी अपणै आप ने युवा ही हा। बिंयानै सगळा साहित्यकारां ने भेळा कर‘र गप्यां मारण रो भी अणूतो ही कोड हो। गोष्ठ्या, कविता पाठ आद रा इत्ता कार्यक्रम उण बगत होवता कै ओ दौर लगो-लग चालतो ही रैवतों।
जद अकादमी कानीं सूं युवा साहित्यकार समारोह करण सारूं नूंत होयी तो सूर्य प्रकाषन मन्दिर मांय भेळा हुवण आळा म्हां सगळा लिखारा भी इण मुजब पैल करण री हूंस जतायी। सरोकार युवा साहित्यकारां री ही संस्था ही। सगळा भेळा होय‘र कार्यक्रम री रूपरेखा बणायी। इण मुजब मोटा लिखारां मांय सूं यादवेन्द्र शर्मा‘चन्द्र‘, सदीक सा., हरीष भादाणी आद साहित्यकारां सूं भी बंतळ करी। बाद मांय ओ तय हुयौ के समारोह सरोकार संस्था ही राजस्थानी अकादमी रै सैयोग सूं करसी अर बीकानेर मांय ही सीताराम भवन मांय राखीजसी। तीन दिंना तक चालण आळे इण समारोह मांय युवा लेखन री अबखायां, उणा री दीठ आद पर घणकरी चर्चावां हुयी। राजस्थान में रचीजण आळे साहित्य मुजब आ बात करीब करीब सगळा ही कैयी कै नूंवा लिखारा नूंवी दीठ अर बीजी भाषावां ने भणते थकै मायड़ भाषा नै सिमरध करसी जणै ही पार पड़ेलां। बाकी सब तो ठीक-ठाक ही हो पण सत्र मांय खाली बै ही लोग रैवतां जका या तो परचा भणन आळा होवतां या फेरूं आयोजन सूं जुड़योड़ा। बारै सूं आवण आळा भी आप-आप री भागिदारी कर परा‘र घूमण नै निकळ जावतां। आ बात खैर, युवा समारोह री ही नीं सगळा ही मायड़ भोम रै समारोंहा री रैवे। पण, सदीक सा. इस्या मिनख हा जका पूठै समारोह मांय युवा लेखकां नै खाली सुण्या ही नीं उणा रै सिरजण पर आपरा विचार भी बराबर राख्या। म्हारी उण बगत राजस्थानी मांय ‘जी रैयो मिनख‘ कविता री पोथी आयी ही। पैली तो आयोजकां कानी सूं मनै राजस्थानी भाषा मांय लिख्योड़े साहित्य री आलोचना मुजब बोलणै री बात ही पण बाद रै मांय नीं जाणैं कईं सोच‘र आयोजकां म्हां कानी सूं खाली काविता पाठ ही करायो। सदीक सा. इस्या मिनख हा जका, म्हारी कवितावां पर सांतरी टिप्प राखी। बिंया कविता रा केई कमजोर पहलुवां कानी पर भी ध्या दिरायौ। बाद रै सत्र मांय समारोह मुजब जद उणा सूं बात होयी तो बै गळगळा होयोड़ा हा। बां कैयो युवा लिखारा रा समारोह लगो-लग होणा चाहिजै। इणसूं खाली आपसी संवाद ही नीं हुवै, म्हा जैड़ा नूंवे लेखण, नूंवा लिखारां रै सरोकारां रै बारे में जाण सकै। बिंया जकी खास बात कैयी बा आज जद भी राजस्थानी री मान्यता री बात उठै मनै घणी याद आवै। बां कैयो-‘जद तक पैली रा लेखकां अर नूंवा लिखारां रै सरोकारां मुजब संवाद अर बंतळ री कोसिस नीं हुवती रैवेली मायड़ भाषा ने जन भाषा बणावण अर मान्यता दिरावण री बात्यां मांय भी कोई दम नीं रैवेला।‘ इण मुजब युवा समारोह रै अंतिम दिन बां समारोह री सार्थगता मुजब आपरा संातरा विचार भी खुल‘र सगळा रै सामीं राख्या।
ओळ्यू रै उणियारै सदीक सा. रो चैरो लगो-लग घुमतो ही रैवे। बरस 1997 री बात है। अेक रात पूरी सदीक सा. सागै बात्यां मांय ही गुजरी। म्हूं उण बगत नौकरी मांय आयग्यो हो। जनसम्पर्क अधिकारी रै पद माथै पैलड़ी पोस्टिंग राजसमन्द जिले मांय हुयी ही। अेक दिन उदयपुर आकाषवाणी केन्द्र रा सहायक केन्द्र निदेषक इन्द्रप्रकाष श्रीमाली रो फोन आयो। बां कैयो कै आकाषवाणी कानी सूं कवि सम्मेलन राखीज्यो है। मनै बिंया इणरी नूंत दी अर बतायो कै थाणै बीकानेर सूं भी अेक कवि आ रैया है। म्हूं उत्सुकता सूं पाछो पूछ््यो-‘कुण?‘ बिंया कैयो कै बीकानेर सूं मोहम्मद सदीक जी ने बुलायो है। म्हूं आ बात सूण‘र अणूतो ही राजी हुयौ। रामसमन्द जिले रै राजकीय कन्या विद्यालय मांय कवि सम्मेलन सिंझ्या रो हो। सदीक सा. मनै देखते ही इत्ता राजी हुया कै सैंसू पैली गळे सूं लगायौ। कवियां रै ठैरण‘र रात रै सुवण री व्यवस्था स्कूल मांय ही राख्योड़ी ही। म्हूं सदीक सा. ने कैयो अबै आज तो म्हारे अठै ही रैवणो पड़सी। म्हूं सिविल लाईन्स मांय अेकलो ही रैवतो हो। मकान भी बडोजूर मिल्योड़ो हो। सदीक सा. पैली तो कैयो के सगळा रै सागै आयो हूं तो सागै ही रैवणो चाइजै, पण म्हारे हठ आगै बिंयारी नीं चाली। कवि सम्मेलन तो रातरा 11 बजी ही खतम होयग्यो। घरै आ‘र दोनूं बिस्तर माथे हथायां करण लाग्या तो पूठी रात ही बात्यां करता रैया। रात भर साहित्य अर साहित्येतर बात्यां चालती ही रैयी। बाकी बात्यां तो ठीक सूं याद नीं रैयी पण लगो-लग बिंयारी कैयोड़ी अेक बात आज भी ओळ्यू मांय है। बां कैयो के राजस्थानी रा लिखारा रो लिख्योड़ो कित्तो भणीजै। म्हूं इता गीत, कवितावां लिखी। मंच मांय कवितावां भण दा, गीत गायदां पण आ पीड़ मांय रा मांय घोचा भी घाले कै राजस्थानी ने भणन आळा नीं है। किताबां निकळे, निकळ‘र ढेर हुय जावै। पुरस्कार देवण आळा पुरस्कार दे देवे, पण इणसूं मायड़ भाषा रो भलो नीं होय रैयो है। राजस्थानी साहित्य ने लोगों तक पूगावण रो उपचार सगळे स्तरां पर करणैं संू ही कीं पार पड़ेला। राजस्थानी मांय आलोचना भी इणी कारण विकसित नीं है कै बा लिखै कुण? जै पढण आळा ही नीं है तो फैरूं लिख्योड़े पर लिखीजणो तो और भी सांवठो काम है।
रात नै बिंया साहित्य मांय होवण आळी राजनीति पर भी खासी बात्या बतायी। इणसूं मायड़ भाषा रे होवण आळे नुकसाण सूं भी बै कम दुखी नीं हा। पूठी रात बात्यां मांय ही निकळगी। दूजे दिन म्हूं बिंयानै राजसमन्द रा दर्सनीय स्थान दिखा‘र लायो। सागै-सागै चालता भी खासी बात्या इणगी-उणगी री होती रैयी। सिंझ्या नै म्हूं उणा ने बस मांय बिठायौ तो बै गळगळा होय‘र कैयो-‘थारै सागै टेम इंया निकळग्यो, कै ठा ही नीं लाग्यो। अबै अपणै आप ने कीं हळको लखावूं।‘
सदीक सा. रो राजसमन्द रो सान्निध्य आज भी म्हारी ओळ्यू मांय इण मुजब पळका मारै कै बिंया संू इती लम्बी आ म्हारी अंतिम मुलाकात ही। इरै बाद तो अेक-दो बार ही बिंया सूं बीकानेर मांय छोटी-छोटी टुकड़ा मांय मुलाकात हुयी। म्हूं भी नौकरी मांय खासो व्यस्त होयग्यो। नौकरी भी बारै ही रैयी। अेक दिन जद ठा पड़यौ कै सदीक सा. नी रैया तो मन कीं बुझ सो ग्यो। बिंयारै सागै री इत्ती बात्यां, याद्या जुड़योडी है के चावूं तो भी उणा नै बिसरा नी सकूं। घड़ी-घड़ी टाबर सरीखी उणा री मूळक, लाड सूं मनै ‘बेटाजी‘ कैवणो, मीठी राग में उणारै गीतां रो सस्वर गावणो, कदैई जूझती जूण फटफटी पर होळे-होळे कोटगेट सूं लेय‘र पूठे बीकानेर मांय उणा रो घूमणो....भूलणों चावूं तो भी उणा नूं भूल नीं पावूं। बै इस्या सांतरा मिनख हा, जका बस मिनख हा। नां हिन्दू, ना मुसलमान, ना सिख, न इसाई, सदीक सा. खाली मिनख हा, और हा-अबखाया सूं जूझते मिनख री हूंस रा कवि।