म्हांरी बात आपरै सांम्ही राखण सूं पैली आपनै ई सुणावूं आ कथा. आंधो मिनख आपरै भायलै सूं मिलणै उणरै घरै गयो। भायलै नै देख भायलो राजी हुयो। हथायां सरू होयी। ठा’ई नीं लाग्यो, कणै दुपारो, दुपारै सू सिंझ्या अर पछै सूरज ई बिसूजग्यो। आंधो भायलो जावण सारू बहीर हुयो जणा उणरो भायलो कैयो, ‘रात हुगी, आ लालटंण ले जा।’
‘लालटंण म्हारै के काम री? म्हनै तो दिखै ई कोनी।’
‘आ थारै खातर नीं, मारग चालणवाळा दूजा लोगां सारू है। बै इणनै देख’र थारै खातर मारग छोड़ देसी।’
‘थांरी आ बात चोखी।’ कैवतै थकै आंधो आपरै मारग टूरग्यो। थोड़ी’क ताळ पछै मारग माथै चालतै उणसूं अेक मिनख टकरायग्यो। आंधो रिसा बळतो बोल्यो, ‘आंख्या फूट्योड़ी है?...सुझै कोनी काईं?’
‘म्हनै तो कोनी दिख्यो। थे-ई देख लेवता।’
‘लालटंण रो च्यानणो-ई को दिख्यो नीं थानै?’ आंधै कैयो तो मारगवाळो मिनख हंसतै थकै पडूतर दियो, ‘पण लालटंण तो बुझîोड़ी है।’
‘बुझ्यौड़ी है!’...
कहाणी मांय आगै कांई होयो, इणनै बतावण री दरकार नीं है। सोचण री बात आ है कै खाली लालटंण सूं ही पार पड़ सकै है कांई? लालटेन बुझîोड़ी है कै फेरूं जग्योड़ी, इणनै देखण नै तो दीदा चाइजै। सूचना अर संचार प्रौद्योगिकी रै इण अधुनातन दौर मांय अबै जद वेबसाइट, ब्लॉग, फेसबुक, ट्वीट्र आद रै कारणै साहित्य री पाठकां लग पूग रो संकट नीं रैयो है, आ बात आपां सगळा नै सोचणी-ई पड़सी कै तकनीक रो किंया सांतरो उपयोग राजस्थानी साहित्य रै बिगसाव सारू कर सकां हां। तकनीक सूं आपांरी बात घणां लोगां ताणी पूगा तो सकां पण साहित्य री आपणी लालटंण रै बारै में ई आपांनै लगोलग सोचणो पड़सी।
आखै संसार मांय ओ इसो दौर है जिण मांय पोथ्यां सूं निकळ’र आखर कम्प्यूटर मांय समावंण लाग रैया है। बगत री बारखड़ी मांय चीजां तेजी सूं बदळती जा रैयी है। तकनीक आपांरै सांम्ही सवाल उठाती, जवाब देवती आखै जग सूं आपांरो जुड़ाव करा रैयी है। कैयो जाय सकै कै सूचना प्रौद्योगिकी रो सांवठौ दौर है।
घणो बगत नीं हुयो जद सर टिम बैर्नर्स-ली आपरै अेक रिसर्च पेपर रै साथै 13 मार्च, 1989 नै वर्ल्ड वाइड वेब ;ूूूद्ध री सरूवात करी। ग्लोबलाईजेशन रै इण दौर मांय वेब अेक तरै सूं नुंवी क्रांति लेयर सांम्ही आयो। आखै जगत नै इण्टरनेट रो ओ रूप पूरी तरै सूं बदळ’र रख दियो। विकसित अर विकासशील देसां रै बीचाळै अेक सांगोपांग पुळ रो काम वर्ल्ड वाईड वेब कर्यो। गूगल सर्च इंजन इणरै ट्रांसलिटिरेसन रो जको आविस्कार करîो है उणसूं कम्प्यूटर मांय हिन्दी रै सागै-सागै राजस्थानी लिखणो ई घणो सो’रो हुयग्यो। अबै फोण्ट री समस्या ई नीं रैयी है। यूनिकोड सूं हरेक भांत री इण्टरनेट पत्र-पत्रिकावां भणी जाय सकै। कागद लिखणो तो जाणै अबै इतियास री बात हुयगी है।
किंया होयो ओ सो-कीं ? थोड़ा विगत मांय झांका।
आ अस्सी रै दसक री बात है। एल्विन टाफ्लर की अेक पोथी आयी ही, ‘द थर्ड वेव’। इण रै मांय सूचना नै अेक उत्पाद, अेक प्रौद्योगिकी अर अेक क्रांति री दीठ सूं देखतां थकां सांतरै ढंग मांय लिखारै आपरी बात नै परोटी। इणरै पछै ई सूचना नै अेक प्रौद्योगिकी रो दरजो मिल्यो। आखै जग पसर्योड़ै अन्तरजाल यानी वर्ल्ड वाईड वेब ;ूूूद्ध सूं भी आगै अबै तमाम तरै रा सर्च इंजन इसा आयग्या है जकां सूं कम्प्यूटर मांय कीं ई सोधणो दो’रो नीं रैयो है। आपांनै जकी जाणकारी चाइजै, जकी फोटू चाइजै, जका विडियो चाइजै अर जठै री लोकेसन चाइजै, इण्टरनेट सैकण्डा मांय आपांरै सांम्ही चौड़ा कर देवै।
ग्यांन रो भंडार खोल’र मे’ल दियो है सूचना प्रौद्योगिकी री अधुनातन आ तकनीक।
पांच करोड़ उपभोक्तावां लग पूगण मांय रेडियै नै 35 बरस लाग्या अर टेलिविजन नै 13 बरस रो मारग तय करणो पड़îो पण इण्टरनेट चंद बरसां मांय ई आखी जगती आपरी ठौड़ बणा ली। सन् 1993 सूं 2000 रै बिचाळै संसार मांय 30 करोड़ लोग नेट सूं उपयोग करण लागग्या हा। बात आपांरै देस री करां तो ठा लागै कै इण्टरनेट रो प्रयोग लगोलग बढ़ रैयो है। नुंवा आंकड़ा बतावै कै अबार देस मांय 8 करोड़ लोग इण्टरनेट रो उपयोग करै। बोस्टन कंसल्टिंग समूह री रपट ‘इंटरनेट न्यू बिलियन’ बतावै कै ब्रिक देस यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन अर इंडोनेसिया मांय इण्टरनेट रो उपयोग करणवाळा री गिणत 2015 मांय अेक अरब 20 करोड़ रै आंकडै नै ई पार कर लेवैली। आ गिणत जापान अर अमरिका मांय इण्टरनेट करणवाळा लोगां सूं तीन गुणा हुवैली।
इण्टरनेट पर अणूती जाणकारी रो मोटो स्त्रोत है- वेबसाइट। निजू, सरकारी अर कॉमर्सियल वेबसाइटां पर जावां तो अणमाप सामग्री मिल जावै पण अबै वेबसाइट सूं कीं बेसी जगचावी विधा सामनै आयी है, बा है- ब्लॉगिंग। वेबसाइट बणावंण सारू डोमिन नाम बुक करावणो पड़ै अर इण सारू कीं सालाना रूपिया ई देवणा पड़ै अर सैंसू मोटी बात आ भी है कै वेबसाइट त्यार करण मुजब ई किणी जाणकार री मदद लेवणी पड़ै। पण, इण्टरनेट पर ब्लॉग री सरूवात रै पछै तो जाणै क्रांति होयगी। इण्टरनेट री साव मुफ्त आ सेवा इसी है जिण मांय अेक भांत सूं इण्टरनेट उपयोग करणवाळो आपरी छोटी वेबसाइट बिना किणी तकनीकी दीठ रै खुद बणा सकै। फोटू, विडियो, ऑडियो अर स्केन कर आपरै मुजब तमाम तरै री चीजां ब्लॉग मांय घाल सकां अर चावै जणां उण पर कीं हलचल कर सकां।
इण्टरनेट माथै ब्लॉगिंग री सरूआत घणी बोदी बात नीं है। नब्बै रै दसक मांय ब्लॉगिंग री सरूवात होयगी पण इवान विलियम्स, मेग वॉयरियन अर बांरै अेक दूजै साथी मिल’र अगस्त-1999 मांय सेनफ्रांसिको मांय पियारा लैब री सरूआत कर’र ब्लॉगर सोफ्टवेयर बणायो। इणरै पछै 2003 मांय गूगल जद पियारा लैब सूं ब्लॉगर सोफ्टवेयर खरीदîो तो ब्लॉगिंग हर आम अर खास सारू सो’री होयगी। गूगल रै पछै वर्डप्रेस, टायपेड, लाईवजर्नल आद भी ब्लॉग री सुविधावां इण्टरनेट प्रयोग करणवाळा नै बैगी ही दे दी। सैंसूं मोटी बात आ हुयी कै इण्टरनेट पर ब्लॉग सुविधा देवण री आ होड़ इत्ती बढ़ी कै फूटरा-फूटरा ले-आउट, गैजेट्स अर ब्लॉग सजावण री तमाम तरै री चीजां ई ब्लॉगिंग करणवाळा नै लगोलग दी जावण लागगी। हरेक सर्च इंजन आप कानी खींचण री खेचळ करतो आपैई सुविधा-दर-सुविधा प्रदान करण लागग्यो अर इणसूं ही ब्लॉगिंग री हर-ओर हर-छोर सरूवात हुयगी। कम्प्यूटर मांय कीं बेसी तकनीकी जाणकारी नीं राखणवाळै नै ई आपरो ब्लॉग बणावण मांय अबै कीं दोरोपण नीं लखावै। बटंण दबावो अर आगै सूं आगै के करणो है, इणरै बारै में भण’र काम चलावो।
हिन्दी मांय बडेरा लिखारा आप-आपरो ब्लॉग बणा’र पाठकां सूं जद आमीं-सांमीं हो रैया है तो राजस्थानी ई इणसूं निरवाळी किंया रैवती। राजस्थानी मांय ब्लॉगिंग री थरपणा बरस 2006 सूं मानीजै। कैयो जावै कै 2006 मांय संजय बैंगाणी ‘घणी खम्मा’ अर ‘मरूभूमि’ नांव सूं अर सागर नाहर ‘राजस्थली’ नांव सूं पैलीपोत राजस्थानी भासा मांय ब्लॉग बणाया। इण रै पछै कीं ब्लॉग और ई बण्या पण उणा पर लगोलग पोस्ट नीं लागी। हां, लारलै कोई तीनेक बरसां सूं तो राजस्थानी मांय ब्लॉगिंग रा रिकॉर्ड तूटग्या है।
इण्टरनेट री ईं क्रांति सूं राजस्थानी रो कित्तो बिगसाव हुयो है, राजस्थानी साहित्य कित्तो’क सिमरध होयो है, इण मुजब कीं कैवणो तो अबार सो’रो नीं है पण आ बात बिना किणी संकै रै कैय सकां हां कै राजस्थानी साहित्य री आपांरी जकी धरोड़ है, उणनै सांतरै ढंग सूं परोटण पेटै तो ब्लॉगिंग रै मुजब जित्तो कैवां उतरो ही कम पड़सी। आज राजस्थानी मांय कोई अेक दरजंण रै अेड़ै-नेड़ै ब्लॉग पत्रिकावां निकळै तो भासा रै प्रचार-प्रसार री दीठ सूं भी घणखरा ब्लॉग बणग्या है। इणसूं जको मोटो फायदो होयो है बो ओ है कि राजस्थानी भासा रै सिमरध साहित्य रो मोटै स्तर पर डिजिटिलाइजेशन होवण लागग्यो है। आवणवाळी पीढ़ी मुजब राजस्थानी भासा रै सांतरै साहित्य री आ कम मोटी सौगात नीं है।
ब्लॉगिंग सूं राजस्थानी मायं पोथ्यां छपण री दरकार राखणवाळा लिखारां नै ई जबरो मंच मिलग्यो है। सैंग सूं मोटी बात आ भी होयगी है कै इणगी आप कीं लिख्यो अर उणगी थोड़ी ताळ मांय ही आपनै लिख्योड़ै पर प्रतिक्रिया (कमेंट्स) भी मिल जावै। हां, तकनीक री कसौटी पर जे साहित्य नै कसां तो आ बात तो आपांनै सोचणी ही पड़सी कै खाली तकनीक सूं ही किणी साहित्य रो भलो नीं होवणो है। साहित्य में जे दम नीं होवैला, साहित्य सांवठो नीं लिख्यो जावैला तो तकनीक भी कीं नीं कर सकैला।
सोचण री बात आ भी है कै इण्टरनेट रै ई बिगसाव सूं कांई राजस्थानी भासा रो भलो होय रैयो है? कलम रा लूठा धणी कमलेश्वर सूं इण मुजब हुयी बंतळ याद आवै। बां कैयो, ‘इण्टरनेट सूं खाली सूचनावां रो बिगसाव हुयो है। इण बिगसाव सूं कथ्य या फेरूं कोई विचार बण रैयो है, ओ नीं कैयो जा सके।’
कमलेश्वरजी री ई बात रै मुजब सोचण री बात आ भी है कै कांई इण्टरनेट पर हुवणवाळी ब्लॉगिंग, पोथ्यां रो इण्टरनेट उथळो आद के पोथ्यां रो स्थान लेय सकै? पोथ्यां जकी रंजकता, बिगसाव री हूंस अर दिमाग नै जको सुकून देवै कांई बो इण्टरनेट री कोई वेबसाइट, ब्लॉग, फेसबुक देय सकै हैं? राजस्थानी भासा अर साहित्य री दीठ सूं इण बात नै केवण मांय कोई संको नीं रेवणो चाइजे कै इण्टरनेट रै खाथै-खाथै प्रयोग सूं खास तौर सूं गांव सूं सैर जाय‘र बसणवाळा लोगां नै आपरी माटी री फेरूं रळी आवण लागगी। बै आपरी मायड़ भासा सूं नेह बरतता उण नै ब्लॉगिंग रै जरियै फेरूं अंवेरण लागग्या है।
सैंग संू बत्तो फायदो ओ हुयो है कै राजस्थानी भासा मांय जे कोई सोध करणा चावै, राजस्थानी भासा रै लूंठै साहित्य नै जै कोई बांचणो चावै, राजस्थानी भासा री सिमरध सबद-सम्पदा नै कोई बिजी भासा मांय भी परोटणी चावै तो उणनै सैकड़ू री तादाद मांय निकळणवाळी राजस्थानी री वेब पत्रिकावां, लिखारां रा निजू ब्लॉग अर फेसबुक मांय झांकण भर री जरूरत है। घणां दिन नीं हुया। कवि, आलोचक भाई नीरज दइया रो फोन आयो। वै सन् 1994 मांय छप्योड़ी म्हांरी राजस्थानी कविता री पोथी ‘जी रैयो मिनख’ रै छपण रै बरस, प्रकासक, मोल मुजब जाणकारी मांगी अर सागै ही पोथी रै आवरण री इमेज मेल करण रो फरमायो। कैयो, राजस्थानी रा लिखारा दुलारामजी सहारण अेक ब्लॉग बणायो है, ‘पोथीखानो’ उण सारू आ जाणकारी देवणी है। म्हैं इण्टरनेट पर ‘पोथीखानो’ ढूंढ्यो तो हाथोंहाथ मिलग्यो। राजस्थानी री तमाम विधावां मांय लिखजणवाळी पोथ्यां रो सांचाणी ओ ब्लॉग खजानो है। मन मांय आवै, ओ आधुनिक तकनीक रो ही कमाल है कै आपां विगत अर अणभार रै किणी भी लिखारै री पोथी सारू कीं जाणणो चावां तो खाली अेक बटंण भर दबावण री जरुत है। पोथी री विधा, उण रो बरस, उण रो आवरण चितराम सैकण्डां मांय आपांरै सांम्ही आय जावै। सोधकारज सारू ओ कित्तो जबरो काम हुयो है। नुंवी तकनीक राजस्थानी रो ओ कित्तो भलो करîो है। इणी तरै राजस्थानी भासा मांय कीं हलचल होवै, कोई बडी बंतळ हुवै तो अबै वा फेसबुक पर थोड़ी’क ताळ मांय ही लिखारा चोड़ै कर देवै। थोड़ा दिन पैली ही राजस्थानी भासा रै विरोध मुजब हिन्दी कहाणी री चावी पत्रिका ‘हंस’ मांय कोई टिप्पणी छपी ही। फेसबुक मांय इणरो आवणो हुयो कै राजस्थानी लिखांरा इणरै विरोध मांय टूट पड़îा। हरख हुयो कै राजस्थानी भासा री वकालत तो आखै जगत मांय अबै इण्टरनेट री पूग रै कारण ही दीखण लागी है।
राजस्थानी मांय निकळणवाळी वेब पत्रिकांवा अर लिखारा रा निजू ब्लॉगां री दुनियां कानी ताकझांक करां तो अेक बात साफ लखावै कै बिजी भासावां रै सांम्ही राजस्थानी ई आपरी पूरी सगती सूं खेचळ कर रैयी है। दूजी कानी ब्लॉगिंग रो बेजा फायदो उठाता कीं लिखारा आत्म-प्रचार रो भी इणनै जरियो बणा लियो है। अठै ताणी तो बात फेर भी ठीक है पण ब्लॉगिंग री लिस्ट जद देखां तो हैडिंग पढ़र उणनै देखण री ललक पर तद साव भाठो लागै जणै उण मुजब ब्लॉग मांय कीं नी हुवै। अेक ब्लॉग रो नांव है, ‘राजस्थानी कविता कोस’। कविता कोस इण्टरनेट री चावी-ठावी पत्रिका है। इण मांय देस रै हजारां कवियां री सांतरी कवितावां हैं। इणगी बिजी भासावां मांय भी कविता कोस मांय सामग्री लगोलग दी जा रैयी है। म्हैं ‘राजस्थानी कविता कोस’ ब्लॉग नै इण सारू ही संभाळîो कै चालो राजस्थानी मांय लिखी जा रैयी न्यारा-न्यारा कवियां री कवितावां रो बठै भंडार हुवैला। कविता कोस री तर्ज पर राजस्थानी मांय भी आ खेचळ कोई भाई करी हुवैला पण जद ब्लॉग मांय पूग्यो तो ठा लाग्यो किणी कवि री खुद री लिखी कवितावां रो कोस है बो।
ब्लॉगिंग मांय अै अबखायां ई कम नीं है। मोटी समस्या अबै आ भी होयगी है कै कीं इसा लिखारा ई है जकां रोज कीं जको चावै बो लिख‘र ब्लॉग मांय नांख दै। अठै तक तो बात फेरूं भी ठीक है पण रीस जणै आवै जद बै इणगी-उणगी सूं जोय’र ई-मैल पर आपरै लिख्योड़ै नै जबर-भणावणो भी चावै। म्हांरै कनै रोजीनै कोई दो-तीन दरजंण इस्या मेल आवै जकां मांय निजू ब्लॉगर आपरै लिख्योड़ै नै भणंण पर जोर देवै। इण जबरदस्ती सूं म्हैं ही नीं घणकरा ई-डाक वाळा जूझ रैया होसी।
राजस्थानी भासा मांय ताबड़-तोड़ बणंण लाग रैया ब्लॉगां री अबखायां है तो उणा रो फायदो ई कम नीं है। नेट पर सर्च करती बेळा अेक वेबसाइट पर निजर थम्म जावै। वेबसाइट रो नांव है- आपाणो राजस्थान डॉट ओआरजी।
राजस्थान, राजस्थानी भासा, राजस्थानी साहित्य अर संस्कृति री दीठ सूं आ आपारी तरै री निरवाळी साइट है। जे आपनै राजस्थानी भासा रै इतियास नै सोधणो है, जे राजस्थानी भासा रै जूनै साहित्य सूं आपनै रू-ब-रू होवणो है, जे राजस्थान रा समाचार जाणना है अर पर्यटन री दीठ सूं राजस्थान री सैर करणी है तो आ वेबसाइट घणी मदद करैला। फूटरी बात आ भी है कै इण वेबसाइट माथै राजस्थानी भासा नै संविधान री मान्यता दिरावण सारू अबार तक होयोड़ी खेचळ रै मुजब भी पूरी जाणकारी मिलै। राजस्थानी भासा रै बिगसाव रो इक्कीस सूत्री कार्यक्रम हो या फेरूं राजस्थान रा लिखारा, राजस्थान री महिमा रो बखांण हो, आ वेबसाइट गजब री है। हां, लगोलग अपडेट नीं होवण री समस्या सूं आ भी जूझ री है। हफ्तै रा समाचार मांय जूना समाचार ही देखण नै मिलै।
युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण इणगी इण्टरनेट रा इन्साईक्लोपीडिया लखावै। राजस्थानी साहित्यकारां, राजस्थानी पोथ्यां, राजस्थानी संस्थावां, जूनै राजस्थानी साहित्य नै अंवेरणै रो जको काम वै कर रैया है, उण रै बारै मांय जत्तो कैयो बो ही कम रैवैला। राजस्थानी भासा रै साहित्य रो डिजिटिलाईजेशन करता थकै बै सोधकर्ता, राजस्थानी सूं लगाव राखणवाळा लोगां वास्तै तो जाणै नींव री ईंट रो काम करîो है। इणी तरै राजस्थानी ओळखांण रो उपयोग राजस्थानी भासा मांय इन्साईकलोपीडिया रै रूप मांय कर रैया है। तकनीक रो सांतरो प्रयोग किणी भासा अर उणरै सिमरध साहित्य रै बिगसाव मुजब कियां करîो जा सकै, ओ आपां इणा सूं समझ सकां।
नीरज दइया री वेब पत्रिका ‘नेगचार’ घणी सबळी है। राजस्थानी भासा मांय लिखी जा रैयी लिखारां री सांतरी रचनावा रै सागै ही इण मांय राजस्थानी रै जूनै अर नुंवै साहित्य रो भी सांगोपांग मेळ है। इणी तरै सत्यनारायण सोनी रो ब्लॉग ‘आपणी भासा आपणी बात’ मांय लोक जीवण रो दरसाव कराती लिखारां री न्यारी-न्यारी विधावां रो दरसाव हुवै। राव गुमानसिंह रै ‘राजस्थानी ओळखांण’ मांय राजस्थानी माटी री सौंधी महक मिलै। ब्लॉग और ई है, जिंया हनवंतसिंह राजपुरोहित रो ‘मरूवाणी’, चैनसिंह शेखावत रो ‘मायड़ रो गोथळियो’, ओम पुरोहित कागद रो ‘कागद हुवै तो हर कोई बांचै’, विनोद सारस्वत रो ‘मायड़ रो हेलो’ आद घणखरा सांतरा ब्लॉग है। सगळा री चरचा अठै संभव नीं है पण मदनगोपाल लढ़ा, राजूराम बिजारणिया, दुलाराम सहारण, दीनदयाल शर्मा, ओम पुरोहित कागद, रामस्वरूप किसान, नंद भारद्वाज, नीरज दइया, विनोद सारस्वत, इकराम राजस्थानी, अजय सोनी रै सागै-सागै घणखरा और भी लिखारां ब्लॉगिंग रै जरियै राजस्थानी भासा रै साहित्य नै जण-जण ताणी पूगावंण री हंूस कर रैया है।
अन्तरजाळ माथै राजस्थानी री चरचा रै सागै आ बात कैवणी ई जरूरी है कै किणी भी भासा मांय लिख्योड़ो साहित्य क्रांति नीं करै। साहित्य मिनखां रो दिमाग जरूर बदळै अर आपां ओ भी कैय सकां कै क्रांति री जरुत मुजब लोगां नै जागरूक करै। इण दीठ सूं राजस्थानी मांय लारलै बरसां मांय बणायोड़ा ब्लॉग राजस्थानी भासा री मान्यता री क्रांति रो बिगसाव करै, इण बात नै कैवण मांय कोई संको नीं है।
म्हैं ओ मानूं कै साहित्य सुभाव संू ही आजादी रो पखधर हुवै। बंधणं नै तोड़ण री छटपटाहट जै लगोलग साहित्य मांय नीं दीखै तो थोड़ै बगत मांय ही बो जड़ हुय जावै। इण दीठ सूं राजस्थानी रा नया ब्लॉग लिखारां नै सोचणो चाइजै। ब्लॉग बणावणो सो’रो है पण उण मांय कीं नुंवो पोस्ट करणो दो’रो। इण मुजब राजस्थानी री न्यारी-न्यारी विधावां माय सांतरी सामग्री आंवती रैवणी चाइजै। नुंवा लिखारां सारू कैवणो चावूं, बै जको लिखै उण मांय खुद आपरी सैली विकसित करै। सबदां नै वाक्य में पिरोवंण री लूंठी जुगत करै। सबद अर व्यंजना पर सांवठी पकड़ राखै। होवणो ओ चाइजै कै कीं नीं कैय’र भी बहोत कुछ कैय देवां। घणो लिखणो सो’रो है पण थोड़ै मांय घणो कैवणो दो’रो। सबद, भासा अर सिल्प सिरजण रा माध्यम है इण पर लिखारां री कित्ती’क चिन्ता है, इण पर विचारण री जरुत है। अर्थ नीं अर्थ-छाया हुवणी चाइजै। घणो पढ़ां, थोड़ा लिखां।
आपां इण्टरनेट पर ब्लॉगिंग करां। राजस्थानी भासा अर साहित्य नै जणां-जणां लग पूगांवा पण, जिको लिखां उण मांय भासा रो सांवठो मुहावरो हुवै। आपांरो लिख्योड़ो भासा रै मुजब मरîोड़ी संवेदना नै फेरूं जीवावै। फगत सबद अर सबदां रो जाळ ही बठै नीं हुवै। आ हूंस राखतां थकां आपां राजस्थानी रै साहित्य नै सिमरध करां। सगळी भासांवां रो साहित्य रो इतियास ओ-ई बतावै के लूंठो बो ई है जको सादो अर सरळ है। ब्लॉग री सामग्री मांय कईबर चमत्कृत करण सारू भासा रा दो’रा सबद, इसा जका घणां नीं बरतीजै बै लिखारा उपयोग करै। प्रतिभा दिखावंण सारू अप्रचलित सबदां रो इस्तेमाल करीजै पण राजस्थानी नै इणरी दरकार नीं है। गालिब तक सरूपोत मांय ओ इज करîो पण थोड़ी ताळ पछै ही बांरै समझ मांय आ बात आयगी कै सबद बै ही लिखणा चाइजै जका घणखरा पाठक समझ सकै। अर आप सैंग जाणो ही हो कै गालिब आज कित्ता चावा नै ठावा है।
.......तो आवो, अन्तरजाळ पर ठसकै सूं ऊभी राजस्थानी रै बिगसाव रै ईं नुंवै मारग पर बढ़ां। साहित्य अर सबद री गरिमा सिरजण सूं लगोलग बढ़ै ही है अर सूचना प्रौद्योगिकी तो ओ सांवठो काम करîो है कै तमाम तरै री साहित्य विधावा, कलावां, संगीत इणरै कारण ई अलग-थलग नीं देख्या जाय‘र अेकै सागै देख्ीाजण लागै। साहित्य, संस्कृति री घेराबन्दी भी इणसूं तूटी है। राजस्थानी भासा अर साहित्य आपरी बिगसाव री हदां सूं बारै निकळ’र पाठकां सांम्ही आवण लागग्यो है। राजस्थानी भासा रै बिगसाव सारू आवणवाळै बगत रै किवाड़ री आ खट-खट राजस्थानी भासा नै मान्यता देवणवाळा भी सुणै।
आमीन!
Jordaar hai sa...
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