Sunday, November 28, 2021

छिब मांय छिब - कमलेश्वर

 कभी राजस्थानी में संस्मरण और डायरी विधा में भी बहुत कुछ निरंतर किया है...

आज पुरानी कुछ प्रकाशित रचनाएं मिली तो लगा, इतने संस्मरण हैं कि पुस्तक ही आ जाए।

बिज्जी, मनोहर श्याम जोशी, कमलेश्वर, विद्यानिवास मिश्र, शंकरदयाल शर्मा, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित जसराज,  प्रयाग शुक्ल, मो. सद्दीक सा., श्रीलाल नथमल जोशी, अन्नाराम सुदामा, किशोर कल्पनाकांत, मनोहर शर्मा,  यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' आदि के सान्निध्य की यादें पहले पहल राजस्थानी भाषा में ही अंवेरी थी। वर्ष 1995 से निरंतर 'जागती जोत', 'माणक' और प्रकाशित होकर बंद हुई बहुतेरी राजस्थानी पत्र—पत्रिकाओं में संस्मरण, डायरी छपी थी।

बहरहाल, कमलेश्वर पर लिखा संस्मरण यहां आपके लिए... 





















ओळयू्ं रै उणयारै-शंकर दयाल शर्मा

 कभी राजस्थानी में संस्मरण और डायरी विधा में भी बहुत कुछ निरंतर किया है...

आज पुरानी कुछ प्रकाशित रचनाएं मिली तो लगा, इतने संस्मरण हैं कि पुस्तक ही आ जाए।

बिज्जी, मनोहर श्याम जोशी, कमलेश्वर, विद्यानिवास मिश्र, शंकरदयाल शर्मा, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित जसराज,  प्रयाग शुक्ल, मो. सद्दीक सा., श्रीलाल नथमल जोशी, अन्नाराम सुदामा, किशोर कल्पनाकांत, मनोहर शर्मा,  यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' आदि के सान्निध्य की यादें पहले पहल राजस्थानी भाषा में ही अंवेरी थी। वर्ष 1995 से निरंतर 'जागती जोत', 'माणक' और प्रकाशित होकर बंद हुई बहुतेरी राजस्थानी पत्र—पत्रिकाओं में संस्मरण, डायरी छपी थी।

बहरहाल, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा पर लिखा संस्मरण यहां आपके लिए... 








Friday, November 4, 2016

दस कवितावां


   महापरिनिर्वाण-अेक

निसर्यौ हो घर सूं
जोवण नै-
जूण जातरा रो साच।
इण सारू नीं कै
मिल जावै बोद्धि ;
घणकरा सवाल हा
अर ही-
बूझण री हूंस
पडूतर आवता भी रैया सामी
पण
भित्यां रो अंधारो बठै
पूगण नीं देवतौ
अंधारै मांय-
उजास सोधण सारू ही हा
सगळा ही म्हारा जतन।
पवित गूंज,
जोत कजळाई-
पसरगी च्यारूंमेर
सिरोळी सांयत
‘म्हंू मारग हूं-
बैवणो तो थानै ही है,
बण’र
आपू आप री जोत।’
-29 मार्च 2015, कुषीनगर


-दोय-

म्हारे-थारै
संगळा रै मांय
बसै बुद्ध।
रूंख सोधतो साच
मूरत मढै़।
अबखै बगत री
नींद सूं जागण री
जूण गत है-
निर्वाण।
-29 मार्च 2015, कुषीनगा

-तीन-

पांखड्या
अकास पूगावै।
पखेरू जोवै
विगत-
जठै
भेळा कर मेल्यौड़ा है
घास फूस रा तिणका
अंतिम जातरा है नीड़।
निवार्ण-
सरूआत।
-29 मार्च 2015, कुषीनगर


-च्यार-

आतम है
मांय रो मून।
मनगत
दीठ।
कदास
थूं-
बसतो रूं-रूं
मारग
पूग जावती आंख।
-28 मार्च, 2915, कुषीनगर
                 
 झांझरको पड़ाव

अंधारी रात
जागै चांद।
आंख्या बसै नींद
सूपनो मारग है,
झांझरको पड़ाव।
  गोरखपुर, 28 मार्च 2015

अभाग

म्हूं नीं हालूं
भगावै-
ओ अबखो
बगत।
नीं चावतै थकै
चालै पग
नंदी नीं-
धार हूं
जठै ले जावै छोळ
कीं नीं है आपरो
जको है-
सगळो उणरो है
बो-
जको
भगा रियो है लगोलग
ओ कैवते-
‘भाग, भाग, भाग’
ओ ही तो है मोटो-
अभाग।
         - जयपुर, 14 नवम्बर 2014
                     

सूना मिन्दर


सूना मिन्दर
मूरत्यां सोधे।
दीठ है-
विगत री सौरम रा
अे ओपता चिण्यौड़ा भाठा।
लगोलग हुवता
निरत बांचै
बिरूदावल्यां।
कवि नै आस है-
कीं लिखीजसी सांतरो।
भागै बगत रो घोड़ो
पण-
नीं दिखै उड़ती धूड़।
सोवणै रूप रो बैम
उपजावै भरम
जूणगत तो सबरी
मिरतु ही है।
         -  खजुराहो, 22 फरवरी 2015



अंवेरी नीं छांट

आभो जोवै
बैवती नंदी
गड्डा कैवे
पाणी री कहाणी
रूंख झाड़ै पान
मगसो हुयौड़ो हरो खोले
मांयरा पोत-
बिरखा हुई
पण
अंवेरी नीं ही छांट।
      -केन नंदी रै किनारे, खजुराहो, 23 फरवरी, 2015


अंतविहूण अकास

उघाड़ मत
पाखती बार्यां
फोड़ा घालै ली
जूनी ओळूं
फगत
बैवती नंदी कणाकली
समदर पूगगी
जदै तक पूगै दीठ
अंतविहुण अकास है।
      -27 मार्च, 2016, अयोध्या

नाव खेचळ है

कोई नीं है
कीं नी है-
आंख जठै तक जावै
अचंभो है-
थारो अर म्हारो
होवणो।
नाव
खेचळ है-
इण तीर सूं
उण तीर लग
पूगण री।
        -27 मार्च, 2016, अयोध्या

Friday, October 14, 2016

मनगत रा पाना



19 अगस्त 2012
दुपारी शिवबाड़ी  री ही। बोळी ताळ संवित सोमगिरीजी महाराज सूं बंतळ होवती रैयी। लारलै कीं दिनां सूं षिव रै नटराज रूप पर ही मन विचार कर रियो है। षिवपुराण अर बीजा कईं पुराण लगोलग बांच रियो हूं।  कल्याण रो षिवोपासनांक भी भण्यौ। महर्षि अरविन्द षिव रै नटराज रूप ने लेय’र सांतरी व्याख्या इण मांय आपरी दीठ सूं करी है। षिवबाड़ी जावणै रो मकसद ओ भी है कै बठै रा मंहत संवित् सोमगिरीजी सूं नटराज रूप पर और कीं जाण सकसूं। गयो जद बां अेक पोथी पकड़ाई जिण मांय षिवजी रै निरत रा भांत-भांत रा फोटू मंड्योड़ा हा। देखते थकै चिदम्बरम मिन्दर मांय री नटराज मूरत्यां आंख्या सामी घूमण लागगी। बांसू हथायां होवती रैयी, ठाई नीं पड़ी। सिंझ्या होगी। मिन्दर मांय भी कीं ताळ रूक्यौ। टूरण लाग्यो तद अंधारो घिरग्यौ। ओ आरती रो बगत हो। मारग भर सोचतो रैयो, अंधारे मांय निरत रो विचार कठैई नीं है, पण अे षिवजी ही है जकानै आपरै निरत सारू सिंझ्या रो बगत दाय आयो। सिंझ्या भी इसी जकी बैगी सूं रात रै अंधारै मारग जावती हुवै।
मन में विचार आवै-ओ भी तो साच है, अंधारो खुद भोळे भंडारी सूं दीपदीपावै। किंया? चांद बांरै माथे विराजै। तारां हमेस बांरै च्यारूंमेर घूमता लखावै अर बांरै हाथ मांय भी तो अगन हुया करै है। अर फेरूं गळे मांय भी पैरण आळो गैणो भी तो बांरौ सरप है। लबोलुआब ओ कै पछै बांनै दूजै किणी उजास रीं की दरकार! सिरस्टि रो उद्भव, स्थिति अर संहार षिव री पाण ही तो है। बां रै नटराज रूप नै निरखां तो लागै, निरत रो बांरो मांड्यौ छन्द उद्भव, स्थिति अर संहार री ही तो व्यंजना है।

18 अगस्त, 2007
जवाहर कला केन्द्र माय भायलो महेष स्वामी  आपरै कैमरे सूं खिंच्यौड़ा फोटूवां री प्रदर्षनी सारू तेवड़ियो हो। पूग्यो तद अणूती भीड़ ही। बोलोबालो उडीकतो रैयो, भीड़ छंटै तो फोटूवां नै निरखूं। घंटे भर पछै ही उडीकती घड़ी आयगी। फोटूवां निरखतो लखायौ, जथारथ नै कीं और फूटरैपण सूं महेष रो कैमरो अंवेर्यौ है। घणकरा टंग्यौड़ा फोटूवां मांय सूं अेक पर निजर ठैरगी। निरत री सौरम। मिनख-लुगाई रो जुगल निरत। अेक फोटू पण पग, हाथ, आंख्या अर डील री दूजी सांतरी मुद्रावां। मंच पर पसर्योड़ो अंधारो...पण निरत करतै कलाकारां पर हाइलोजन री जतन सूं नाख्यौड़ी रोषनी सूं मंड्यौडो धूओं...निरत सारू उठ्यौडा दोनूं कलाकारा रा पग, हाथ अर दीन-दुनिया सूं निचिन्ता निरत मांय ही लीन होवता चेरै रा भाव। जुगल निरत नै जाणै हमेस सारू भायलो महेष अंगेज लिनो। जीवती-जागती छिब। फल्ैस रै बिना लियोड़ो ओ फोटू घरै आवण रै बाद भी चित मांय चिलका मारतो रैयो।  
कठैई भण्यौड़ो चेते आयो, फोटोग्राफी रो जद जलम हुयौ तद आ बात खासतौर सूं कैयीजी-आज सूं चित्रकला मरगी है। अणूतो विरोध भी कैमरै रो तद हुयौ। पण आज लखावै, बीजी घणकरी कलावां रो आधार फोटोगाफी बणती जा रैयी है। फोटू खिंचती बेळा कैमरे सूं जे जथारथ रो ही चितराम हुवै, जकी दीठ है, बा उणी भांत कैमरे सूं लीरीजै तो इण मांय पछै नूंवो की। आ तो कैमरे सूं छिब नै हूबहू परोटण री ही हंूस हुयी। इण मांय कला कठै? पण फोटोग्राफी कला री दीठ सूं तब ओळखिजै जद कैमरो संवेदना री आंख बणै। किंया? जद दिखण आळे जथारथ मांय घुळयौड़ी अदीठ नै भी छायाकार आपरी संवेदना री दीठ सूं कैमरे रूपी मषीन सूं अंवेर ले। जद कैमरो दिखण आळे दरसाव सागै फोटू लेवण आळे रै मन मांय घटण आळी अणभुति नै भी अंवेरे। जद जथारथ नै अेक सांगोपांग विजुअल सेंसिबिलिटि सूं छायाकार आपरै तई परोटे अर जद बो दीठ रै नूंवै मुहावरैॅ सारू खेचळ करै। नागी आंख जठै तक देख सके, साच कोरो बो ही नीं हुवै। कैमरो साधन है, साध्य नीं है। फोटू मांय आवण आळी छिब में जे घटना, समै अर परिवेस रै सागै ही तद री संवेदना भी घुळ जावै तद ही बा अेक फूटरी कलाकृति बन सकै। फोटोग्राफी नै कला री उपमा तद ही आपां देय सकां। इणी मुजब केई बार आ बात भी लखावै कै केमरो कला नै परोटण री तकनीक है, मूल तो उणसूं छिब लेवण आळो बो कलाकार है जको घणकरी बार देखण आळा नै उण दीठ मांय ले जावै जठै भंगुर क्षण इतियास बण जावै। मन मांय हंूस जागै, फोटूग्राफी री कला दीठ मुजब ही अेक पोथी लिखीज सकै। खेचळ करसूं। आमीन।

31 अक्टूबर, 2014
घणकरी बार मिनखां रै मांयलै मन में झांकतै अणखूट आफळ हुवै। कदै-कदास किणी नै जाणन सूं बतो नीं जाणणो चोखो।  चितारूं, अेक दिन मोबाईल री घंटी बाजी। परली कानीं सूं आवाज आई-‘थै राजेष जी बोलो?’
हां, बोल रियो हंू।
‘म्हूं, बीकानेर सूं ....... बोलूं हूं।’
...............(बोलोबालो रैवूं, कीं जवाब नीं देवूं।)
‘म्हूं आपनै फेसबुक माथै फे्रण्ड रिक्वेस्ट भेजी ही। साहित अर कलावां पर आपरो लिख्यौड़ो भणतो रैवूं। बीकानेर मांय अेक बडो कला आयोजन कर रियो हूं। आपनै उण मांय जरूर आवणो है। आपसूं पैली मिल्योड़ो हूं। आप तो बीकानेर रा ही हो नीं?’
मोबाईल पर ..... पैलीपोत इणी तरै सूं बां बंतळ करी ही। उणरै बाद फेसबुक पर बांरी फ्रेण्ड रिक्वेस्ट म्हूं मान ली। अबै बै रोज ही फेसबुक पर निजर आवण लागग्या हां। कला हेताळु बणता थका बै नागी-उगाड़ी लुगायां रा फोटू हमेस ही बै फेसबुक पर घाल देवता। लखायौ, इणसूं ही ओ मिनख जग-चावो बणन कानी बईर होयो है। आप-आपरी सोच। मनै कईं। अेक दिन फेरूं मोबाईल री घंटी बाजै-
‘सर! ...... बोलूं हूं।’
 कैवो। कीं कैवणो चावो?
‘बीकानेर रै म्हारे आयोजन सारू कीं राय आप नीं दी।’
आयोजन हुयौ है कईं?
‘नीं, आगलै महिनै री अेक-दो तारीख नै हुवण आळो है। थै इण मुजब म्हारी फेसबुक सूं मैटर लेयर’र उणनै सेअर करो नीं! थांरौ तो जबरो नेटवर्क है।’
सुण’र अचकचा जावूं। साफ-सट कैय देवूं, किणी रै कैवण सूं कोई चीज फेसबुक मांय म्हूं सेअर नीं करू। दाय आवै तो मतैई कर दिया करूं।...
‘म्हूं देखी है, आप रेअर ही चीज्यां सेअर करो।’
‘...थे कलावां पर इतरो चोखो लिखो, कीं बीकानेर कला उत्सव सारू भी लिखो नीं।’
लिखण जोगो कीं लागसी तद लिखसूं ही। कैय’र पीण्डो छूडावूं। अचांचूक लागै ओ मिनख चिपकू है।...
अेक दिन तो हद होगी। फेसबुक पर ‘डेली न्यूज’ मांय लिखण आळे काॅलम ‘कला तट’ नै सेअर कर रियो हो कै मैसजबाॅक्स मांय देखूं, ‘म्हूं फलां तारीख ने...फलां जगै जयपुर मांय रैसूं। बीकानेर रै कला उत्सव मुजब। म्हारै सूं आय’र मिलो-फलां होटल में या फेरूं म्हारे मोबाईल पर बात करो।’
लाग्यो, ओ तो लीयाड़ोपण है।...मैसेज रो कोई जवाब नीं देवूं। कम्प्यूटर बंद कर दूं। अेक दिन फेरूं मोबाईल री घंटी बाजै। उणगी कला हेताळु जनाब ही है। नीं चावतै थकै ही बोलण मांय लूखोपण आय जावै। (पण बांनै कीं फरक नीं पड़े)
‘म्हंू जयपुर मायं हूं। आपसूं मिलणो चावूं। कद मिलसौ। सिंझ्या जवाहर कला केन्द्र मांय रैसूं।’...
साॅरी, म्हूं बीजा घणकरा काम तेवड़ियोडा है। घरै सिंझ्या लेट पूगसूं।
‘म्हूं सिंझ्या नै आपनै फोन कर आसूं।’ कैवते बै फोन मेल देवे।
अंधारै मंडती सिंझ्या भायलै महेष स्वामी ने लेय’र बै घरै ही पूग जावे। अबै कीं करूं। बंतळ हुवै। इम्प्रेस करण सारू नामी-गिरामी साहितकारां अर कलाकरां सूं आपरै रिस्ता रा घणकरा किस्सा सुणावै। थोड़ी ताळ पछै कैवे, कोई शास्त्रीय गायक रो नाम बतावो। चावूं बीकानेर उत्सव मांय उणनै नूंतूं। आपरा तो जबरा सम्पर्क है। म्हूं साफ कैयदूं...इण बगत किणी रो नाम नीं बता सकूं। लारै ही पड जावै तद धु्रवपद गायिका मधुभट्ट तैलंगजी नै नूंतण री कैयदूं। पण सागै आ भोळावण भी देवूं कै बांनै आदर सूं नूंत्यां। बै घणी मनुआर करै तद मधुजी सूं फोन पर बांरी बात करा देवूं। बांरी हामळ भी दीरा दूं।
केई दिनां बाद ठा पड़ै, मधुजी सूं बै बात करै पण रूआब ओ कै जाणै बै बांनै नूंत, बां पर कोई अेसान कर रिया है। पण आ बात ठा लागै तद अणूती रिस आवै। पण अबै कीं कर सकूं। मन मांय आवै, घणकरा चैरा आपरी थोड़ी-घणी भेळी कर्योड़ी पूंजी पाण कला अर साहित् रा हेताळु बणन रो सांग रचै। असल मांय तो जस कमावण सारू बां रा घोघा हुळ-हुळ करता रैवे। साहित अर कलावां मांय आ घुसपैठ इण दिना कीं बती ही होय री है। पण पछै मन विचारै, थनै कईं!  कबीरा इण संसार मांय भांत-भांत रा लोग।

  11 जनवरी, 2014
हरिष्चन्द्र माथुर राज्य लोक प्रषासन संस्थान (ओटीएस) मांय चाल्र्स कोरिया नै सूणन नै गयो हो। भारत भवन अर जवाहर कला केन्द्र री वास्तु रचना बांरै हथूकै ही हुयोड़ी है, इण खातर बां नै जाणूं। सुणन सारू इण खातर उंतावळो हो कै ओटीएस कोरिया रो अेक लेक्चर सैर, अणूती बढ़तो मानखै अर वास्तु पर ही राख्यो हो। वास्तु अर कला रो कीं सगपण होय सकै, इण मुजब चाल्र्स कोरिया कीं नंूवी बात बतासी-आ सोच’र ही ठीक ताळ पर बां नै सुणन नै पूगग्यो। 
चाल्र्स कोरिया आखै जग मांय सैरां रो बणतो जाळ, बढ़ता मिनख अर घटता घरां पर ही बोलणो चालू कर्यौ। बां कैयो, ‘अेक सैर मांय दो सैर बसै। अेक बै रैवणिया जकानै सभ्रंात कैवां अर दूजा बै जका स्लम बस्त्यां मांय बसै।’ ओ भी कै, ‘सैरा मांय बसावट जे सोच समझ’र नीं करां। कोई प्लांनिंग नीं हुवै अर बणघट मांय खुलोपण (बेसी स्पेस) नीं होसी तो अपराध बस्त्यां, क्राईम सिटी रो खतरो हमेस मंडरावतो रैसी।’ बां नगरां री वास्तुकला पर भी सांतरी बात्यां बताई। कैयो, जूना सैरां मांय बसावट संकड़ी रैयी पण तद भी मिनखां ने कदैई कोई दिक्कत नीं आई। कारण ओ रैयो कै मकानां मांय बायरै सारू बारी बाण्डा रै स्पेस री कठैई कोई कमी नीं  राखीजी। जैसलमेर रो बां उदाहण दियौ-संकड़ी बसावट पण हवेल्यां अर बां रै जाळी-झरोखां मांय सू आवती रोसनी अर हवा सूं मिनखां सारू सोरोपण हो। हथाई रो स्पेस हो।
चाल्र्स कोरिया हांगकांग, हाॅलैण्ड, लंदन, कोलकता, मुम्बई आद में बधती जनसंख्या अर बसावट रा आंकड़ा भी सामी राख्या। पण इण नगरां री जूनी गत भी सामी राखी-जिणमें संकड़ोपण होवते थकै हदभात स्पेस हो। बै जद आपरी बात राख रिया हा, जवाहर कला केन्द्र री बां री कल्पना रै-रै चेते आवती रैयी। साव साच है, घर हदभांत फूटरा तो बणता जा रिया है पण बां मांय स्पेस रो लगोलग टोटो होय रिया है। घरा री कीं बात करां, मिनखां कनै भी तो अब दूजे मिनखा कनै कठै स्पेस रैयो है! अचाचूंक मन विचारै, बारी-बाण्डा खुला रैवता तो बारली हवा मांय लगोलग आवती रैवती पण अबै तो सगळा आपरै घेरे सूं बाण्डे निकळणो ही नीं चावै। हवा सारू ही नीं, आंख मायं रैवण आळो पाणी भी जाणै लगोलग हवा नीं मिलण सूं सूकतो जाय रियो है। बगत रा धमीड़ा जाणै कठै ले जासी।  

14 जनवरी, 2014
पांच-तारा होटल मांय जावणो हुयौ। सिरजण सरोकार प्रोग्राम सारू नंूंत ही। बठै मोटा कैईजण आळा लिखारा सूं भिड़न्त हुगी। बात-बात में बै आपरी सुणावण लागग्या। सरू हुया पछै रूकै किंया! जाणूं बांरो नाम-इकराम है। जोड़-जुगाड़ इसी कै कोई पुरस्कार, पद नीं छोड्यौ। पण बोली मिसरी सूं मिठी। कदै-किनेई रे री तूं तक नीं कैयो। स्यात ही कोई इस्यौ हुसी जको बां रै मूंडै सूं कीं कड़वो सुण्यौ हुसी। हिंसा सूं कोसां दूर। पण मन मांय विचार आवै, लिखण रो घणो मादो नीं हुवतै थकै बीजा नै आपरी हुस्यारी सूं पटकणी देय’र अपने आप ने थरपणो हिंसा रो ही अेक रूप नीं है! अहिंसा रो पाठ भणावण आळा मिठा-गुट सबद-वीर इण तरै री हिंसा रा जबरा खिलाड़ी हुवै। अपने आप नै जे कोई थरपै तो सोचो किण री पाण ओ हुवै। किनैई आडै करै बिना किंया कोई थरपीज सकै।...तो मतैई मिठा बोल पाण थरपीज्योड़ा जिता भी लिखारा है, कदैई नै कदैई बे खूंखार हिंसक नीं रैया है! हिंसा री पगडांडी सूं ही थान थरपीज सकै। लिखीजण आळे वाला सबदा री बठै कीं दरकार!



Wednesday, August 12, 2015


  "दुनिया इन दिनों" पत्रिका

रे नूवे अंक में कवि, आलोचक भायलो  नीरज दइया 

कीं  कविताओं  रो अनुसिरजण करयो है. 

मन माय आयो आप भी इण कारज ने देखो, आपरी दीठ सारू--



दृष्टि देती है कविता

अकाल सुनाता है-
अनहद नाद,
कवि तुम भी गाओ-
गीत मनों के।
अलग-अलग है-
सबका अपना-अपना आकाश
पर धरती सभी की एक !
हे मनुष्य !
मत भूल मनुष्यता
कविता देती है-
दृष्टि।
००००

कविता है हथिहार

इससे पहले
कि सूख जाए
सभी हरियल वृक्ष
आकाश से
बरसने लगे अंगारे
तारों की छांह में जाकर
सुसताने लगे सूरज
उजियारा करने लगे प्रयास
अंधेरे में छुप जाने के
इससे पहले कि
दौड़ने लगे
उम्मीदें और आशाएं
सूख जाए आंखों से पानी
आओ !
इस भरोसे के बल रचें कविता
अंत में कविता ही है
अनहोनी में आयुध।
००००

जीवन

जब जगता हूं
तब हो जाता है उजाला
जीवन है- उजाला।

जब होता है अंधेरा
तब आ जाती है नींद
मृत्य है- निद्रा।

जब लिखता हूं
तब हो जाता हूं आकाश
मन है- आकाश।

जब सोता हूं
तब आते हैं स्वपन
आकाश है- सपनें।

जब मंदिर जाता हूं
तब प्रार्थना करता हूं
पछतावा है- प्रार्थना।

जब नहीं हल होती समस्याएं
तब आता है क्रोध
अंतस का भय है- क्रोध।

उजाला, निंद्रा, आकाश,
स्वपन, प्रार्थना, क्रोध-
इन सब को कर के एकत्र
जीता हूं- यह जीवन !
००००

चाय पीते हुए मां

जब पास नहीं होती मां
रहती है वह
आंखों में हमारी।
छुट्टी के दिन
धूप चढ़ने तक
नहीं उठती बहू
कुछ फर्क नहीं पड़ता
मां के
वह उठ जाती है अल-सवेरे
लेकिन नहीं छोड़ती बिछौना
डरती है कि कहीं आवाज ना हो कोई
चाय पीने की तलब होते हुए भी
नहीं जगाती बहू को।
चुप-चाप प्रतीक्षारत
घड़ी में तलाशती
बहू के सवेरे को 
और बहू भीतर संकुचाती
जब उठती है, कहती है-
“आज देर हो गई
आपको चाय नहीं दे सकी,
अभी लाती हूं...”
चाय पीते हुए मां
साफ झूठ बोलती है-
“आज मेरी भी आंख
जरा देरी से ही खुली थी।”
००००

रेत-घड़ी

हवा पौंछती है
धोरों पर अंकित पद-चिह्न
रहता नहीं कुछ भी शेष
रेत-घड़ी 
कण-कण का करती हिसाब
जो बीत गया
कर देती है उसको-

मुक्त !

००००

Saturday, September 7, 2013

"कविता देवै दीठ" सूं कीं कवितावां

कविता री दीठ संस्कृति रे पाण ही हुवे. इण बात रो गुमेज है के हूँ राजस्थानी जेड़ी जग री लूंठी-अलूंठी म्हारी मायड  भासा मायं सोचू. राजस्थानी री सबद संपदा पर जद भी जाऊं, लखावे राजस्थानी फगत भाषा नी, मिनखपणे रे जुगबोध ने अंवेरती संस्कृति है.  इण पर कदै फेरु...अणभार "कविता देवै दीठ" सूं कीं कवितावां आपरी खातर...


जीवण

जागूं जणै
उजास हुय जावै
उजास, जीवण है।

अंधारो हुवै जणै
नींद आ जावै
नींद, मिरतु है।

लिखूं जणै
अकास हुय जावूं
अकास, मन है।

सोवूं जणै
सुपना आवै
सुपना, अकास है।

मिंदर जावूं जणै
अरदास करूं
अरदास, पछतावो है।

नीं पड़ै पार जणै
रीस आवै
रीस, अंतस रो डर है।
उजास / नींद/
अकास / सुपना
अरदास / रीस-
आं सगळां नैं
भेळा कर
जीवूं ओ जीवण।
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निसर जावै रेत

रेत नीं
अंवेर्यो हो
धोरां रो हेत।

धोबा भर-भर
भेळी करता बेकळू
भायलां सागै
रळ-मिळ’र
रोज बणावता
म्हैल-माळिया।

विगत मांय जावूं
सोधूं-
कीं लाधै कोनी
भींच्योड़ी होवतै थकै
छानै’क
मुट्ठी सूं
निसर जावै रेत।
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रेतघड़ी

पवन धोवै
धोरा मंड्या पगल्या
कीं नीं रैवै बाकी
रेतघड़ी
कण-कण री
करै गिणती
बीत्योड़ै नैं करती
मुगत....।
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सबद

एक
अदीठ नैं
देवै दीठ,
थारै-म्हारै
बिचाळै रो भरै-
आंतरो।

गूंगा होवता थकां पूगै
था कनै म्हारा
अर
म्हा कनै थारा-
सबद।

म्हूं पोखूं
म्हारी पीड़,
भेळो करूं हेत....
आव-
अबखै बगत सारू
अंवेरां आपां
थारै-म्हारै बिचाळै रा
अणकथीज्या
सबद।
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दोय
नाप लेवै सबद
अरबां-खरबां
कोसां रो आंतरो
बूर देवै
मन मांय
खुद्योड़ी
अलेखूं खायां।

घणकरी बार
सुळझाय देवै
अंतस मांय
उळझ्योड़ा
हजारूं-हजार
गुच्छा।

सबद पुळ है
अबखै बगत रा
जीवण-जातरा रा।
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