Sunday, December 2, 2012

तारा छाईं रात



अवधेश मिश्र रा चित्रा सूं ऐकमेक होवती थकां




आभै उग्यौ-
चांद,
तारा छाईं रात।
संको करती थकां
इणगी-उणगी भाजै
लकिर्यां
लुकोवै दीठ।
कीं नीं कैवे
पण
फेंरू भी बोले मून।








-दो-

नीं
कोई कथा नीं
व्यथा नीं।
सामीं निजर आवै-
धूंधळोपण,
ओळखाण मांडै
जूण जातरा चितराम।

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