Friday, November 4, 2016

दस कवितावां


   महापरिनिर्वाण-अेक

निसर्यौ हो घर सूं
जोवण नै-
जूण जातरा रो साच।
इण सारू नीं कै
मिल जावै बोद्धि ;
घणकरा सवाल हा
अर ही-
बूझण री हूंस
पडूतर आवता भी रैया सामी
पण
भित्यां रो अंधारो बठै
पूगण नीं देवतौ
अंधारै मांय-
उजास सोधण सारू ही हा
सगळा ही म्हारा जतन।
पवित गूंज,
जोत कजळाई-
पसरगी च्यारूंमेर
सिरोळी सांयत
‘म्हंू मारग हूं-
बैवणो तो थानै ही है,
बण’र
आपू आप री जोत।’
-29 मार्च 2015, कुषीनगर


-दोय-

म्हारे-थारै
संगळा रै मांय
बसै बुद्ध।
रूंख सोधतो साच
मूरत मढै़।
अबखै बगत री
नींद सूं जागण री
जूण गत है-
निर्वाण।
-29 मार्च 2015, कुषीनगा

-तीन-

पांखड्या
अकास पूगावै।
पखेरू जोवै
विगत-
जठै
भेळा कर मेल्यौड़ा है
घास फूस रा तिणका
अंतिम जातरा है नीड़।
निवार्ण-
सरूआत।
-29 मार्च 2015, कुषीनगर


-च्यार-

आतम है
मांय रो मून।
मनगत
दीठ।
कदास
थूं-
बसतो रूं-रूं
मारग
पूग जावती आंख।
-28 मार्च, 2915, कुषीनगर
                 
 झांझरको पड़ाव

अंधारी रात
जागै चांद।
आंख्या बसै नींद
सूपनो मारग है,
झांझरको पड़ाव।
  गोरखपुर, 28 मार्च 2015

अभाग

म्हूं नीं हालूं
भगावै-
ओ अबखो
बगत।
नीं चावतै थकै
चालै पग
नंदी नीं-
धार हूं
जठै ले जावै छोळ
कीं नीं है आपरो
जको है-
सगळो उणरो है
बो-
जको
भगा रियो है लगोलग
ओ कैवते-
‘भाग, भाग, भाग’
ओ ही तो है मोटो-
अभाग।
         - जयपुर, 14 नवम्बर 2014
                     

सूना मिन्दर


सूना मिन्दर
मूरत्यां सोधे।
दीठ है-
विगत री सौरम रा
अे ओपता चिण्यौड़ा भाठा।
लगोलग हुवता
निरत बांचै
बिरूदावल्यां।
कवि नै आस है-
कीं लिखीजसी सांतरो।
भागै बगत रो घोड़ो
पण-
नीं दिखै उड़ती धूड़।
सोवणै रूप रो बैम
उपजावै भरम
जूणगत तो सबरी
मिरतु ही है।
         -  खजुराहो, 22 फरवरी 2015



अंवेरी नीं छांट

आभो जोवै
बैवती नंदी
गड्डा कैवे
पाणी री कहाणी
रूंख झाड़ै पान
मगसो हुयौड़ो हरो खोले
मांयरा पोत-
बिरखा हुई
पण
अंवेरी नीं ही छांट।
      -केन नंदी रै किनारे, खजुराहो, 23 फरवरी, 2015


अंतविहूण अकास

उघाड़ मत
पाखती बार्यां
फोड़ा घालै ली
जूनी ओळूं
फगत
बैवती नंदी कणाकली
समदर पूगगी
जदै तक पूगै दीठ
अंतविहुण अकास है।
      -27 मार्च, 2016, अयोध्या

नाव खेचळ है

कोई नीं है
कीं नी है-
आंख जठै तक जावै
अचंभो है-
थारो अर म्हारो
होवणो।
नाव
खेचळ है-
इण तीर सूं
उण तीर लग
पूगण री।
        -27 मार्च, 2016, अयोध्या

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